पिता की मौत पर तड़पते रहे मासूम, जब रिश्तेदार और समाज ने छोड़ा साथ तो मुस्लिम युवकों ने थाम लिया हाथ
इंसानियत की मिसाल: नौतनवा में लकड़ी के लिए दर-दर भटका बच्चा, पराया धर्म बना सबसे बड़ा सहारा
महराजगंज टाइम्स ब्यूरो: धर्म और जाति की दीवारों से बंटे समाज में कभी-कभी ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जो यह साबित कर देती हैं कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। जिले के नौतनवा कस्बे में घटी एक मार्मिक घटना ने पूरे इलाके को झकझोर दिया। यहां एक मासूम बच्चा अपने पिता की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार के लिए दर-दर भटकता रहा। रिश्तेदारों और समाज ने उसे अकेला छोड़ दिया, लेकिन कुछ मुस्लिम युवकों ने मदद का हाथ बढ़ाकर मानवता की मिसाल कायम की। 14 वर्षीय राजवीर ने पिता का शव ठेले पर रखकर श्मशान घाट तक पहुंचाया। उम्मीद थी कि वहां मदद मिलेगी, लेकिन घाट के प्रबंधकों ने साफ कह दिया कि "लकड़ी लाओ, तभी चिता जलेगी।" न पैसा, न सहारा – मासूम निराश होकर शव को लेकर कब्रिस्तान तक जा पहुंचा, मगर वहां भी जगह न मिली। टूटे दिल और भीगे आंसुओं के साथ वह सड़क पर लकड़ी के लिए भीख मांगने लगा। इसी दौरान कुछ मुस्लिम युवक वहां से गुजरे। बच्चे की हालत देख वे पिघल गए। उन्होंने न केवल लकड़ी का इंतजाम किया, बल्कि विधिविधान से अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था कराई। रात 11 बजे तक वे बच्चे के साथ खड़े रहे। इतना ही नहीं, आगे की जिंदगी में मदद के लिए आर्थिक सहयोग भी दिया।यह घटना समाज के लिए आईना है। जिनसे बच्चे को उम्मीद थी, उन्होंने मुंह मोड़ लिया, और जिनसे उम्मीद नहीं थी, उन्होंने पिता की चिता सजाई। इलाके में इस घटना की चर्चा हो रही है और लोग कह रहे हैं – "धर्म का असली नाम है इंसानियत।"
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